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लेखनी प्रतियोगिता -02-Nov-2022 आंवला नवमी



        शीर्षक :- आंवला नवमी

       आंवला नवमी कार्तिक माह की शुक्लपक्ष की नवमी को मनाई जाती है इस दिन स्त्रियां व पुरुष दोनौ ही ब्रत रखते है और आंवले के बृक्ष की बिधि बिधान से पूजा करते हैं।

     इसको मनाने के पीछे बहुत सी पौराणिक कथाये कही जाती है उन कथाऔ मे एक कथा इस प्रकार है :-

           एक राज्य में एक  राजा रहता था। राजा ने यह प्रण लिया था कि वह अपनी प्रजा में रोजाना सवा मन आंवला दान करेगा। उसके बाद ही खाना ग्रहण करेगा। राजा अपने प्रण के अनुसार ऐसा ही करता था। इसलिए उसका नाम आंवलया राजा पड़ गया। अब सब लोग उसको इसी नाम से जानने लगे। 

                 उसकी इस आदत से उसके सगे सम्बन्धी परेशान थे।  स्वयं उनके सगे   बेटे और बहु को भी यह बात पसंद नहीं थी। इसलिए एक दिन उसके बेटे-बहु ने सोचा कि राजा इतने सारे आंवले रोजाना दान करते हैं, इस प्रकार तो एक दिन सारा खजाना खाली हो जायेगा। एक दिन बेटे ने राजा से कहा की उसे इस तरह दान करना बंद कर देना चाहिए। 

                   इससे राजकुमार की बात सुनकर राजा को बहुत दुःख हुआ और राजा ने रानी के साथ महल का त्याग कर दिया।  फिर क्या था, राजा आंवला दान नहीं कर पाए और अपने प्रण के कारण कुछ खाया नहीं। जब भूखे प्यासे सात दिन हो गए तब भगवान को उनके ऊपर दया आ गई।
                    भगवान ने सोचा इसकी किसी तरह सेवा करनी चाहिए। इसलिए भगवान ने, राजा के लिए जंगल में ही महल, राज्य और बाग-बगीचे सब बना दिए और ढेरों आंवले के पेड़ लगा दिए। जब राजा रानी ने यह देखा कि जंगल में उनके राज्य से भी दोगुना राज्य बसा हुआ है। राजा, रानी से कहने लगे रानी देख कहते हैं, कभी भी सत्य का साथ नहीं छोड़ना चाहिए। आओ नहा धोकर आंवला दान करें और भोजन करें।
 
                राजा-रानी ने आंवले दान करके खाना खाया और खुशी-खुशी नए महल में रहने लगे। उधर आंवला देवता का अपमान करने व माता-पिता से बुरा व्यवहार करने के कारण राजकुमार के बुरे दिन आ गए। राजा के बहू बेटे परेशान रहने लगे।

                     भगवान ने उन दोंनौ बहू बेटे को दन्ड देना चाहा और भगवान के शाप के कारण  उसका राज्य शत्रुओं ने छीन लिया। वह दाने-दाने को मोहताज हो गया और काम ढूंढते हुए  एक दिन वह अपने पिताजी के राज्य में आ पहुंचा। उसकी हालात इतनी बिगड़ी हुई थी कि पिता ने उन दोनौ को  बिना पहचाने हुए काम पर रख लिया। बेटे-बहु सोच भी नहीं सकते कि उनके माता-पिता इतने बड़े राज्य के मालिक भी हो सकते हैं सो उन्होंने भी अपने माता-पिता को नहीं पहचाना। 

           उनको वहाँ रहते हुए बहुत दिन होगये। एक-दिन बहु ने सास के बाल गूंथते समय उनकी पीठ पर मस्सा देखा। उसे यह सोचकर रोना आने लगा कि ऐसा मस्सा मेरी सास के भी था। हमने ये सोचकर उन्हें आंवले दान करने से रोका था कि हमारा धन नष्ट हो जाएगा। आज वे लोग न जाने कहां होगे ?

                यह सब सोचकर वह बहुत परेशान होगयी। और  बहु को रोना आने लगा और आंसू टपक टपक कर सास की पीठ पर गिरने लगे। उसकी सास ने तुरंत पलट कर देखा और पूछा कि, तू क्यों रो रही है? 
         उसने उत्तर देते हुए कहा,"  आपकी पीठ पर जैसा मस्सा वैसा ही मेरी सास की पीठ पर भी था। हमने उन्हें आंवले दान करने से मना कर दिया था इसलिए वे घर छोड़कर कहीं चले गए। तब रानी ने उन्हें पहचान लिया। सारा हाल पूछा और अपना हाल बताया। 

       फिर उन्होने  अपने बेटे-बहू को समझाया कि दान करने से धन कम नहीं होता बल्कि बढ़ता है। बेटे-बहु भी अब सुख से राजा-रानी के साथ रहने लगे।अब उनकी समझ मे आगया कि दान करने से धन कभी कम नही होता है । इसके बाद उन दोनौ भी रोज कुछ न कुछ दान करने का नियम बना लिया।

      उस समय से ही यह आंवला नवमी का ब्रत व पूजा आरम्भ होगयी जो आज तक श्रद्धा से मनाते आरहे है।

आज की दैनिक प्रतियोगिता हेतु रचना

नरेश शर्मा " पचौरी 

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6 Comments

Mahendra Bhatt

04-Nov-2022 11:05 AM

बहुत खूब

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Pratikhya Priyadarshini

03-Nov-2022 11:58 PM

Bahut khoob 🙏🌺💐

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Palak chopra

03-Nov-2022 11:08 AM

Shandar 🌸

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